शुक्रवार, 19 सितंबर 2008

आतंकी गिरफ़्तार या अल्पसंख्यकों पर अत्याचार?

मैं पहले ही जानता था कि जो एनकाउण्टर हुए उस में से कोई नुक़्ते वाला नाम ही निकल कर सामने आएगा और इलाका भी कोई मुसलमानी ही होगा। दिल्ली का जामिया नगर यानी भारत में बसा मिनी पाकिस्तान, आतंकवादियों (मुसलमानों) की धर्मशाला और देश के विरुद्ध प्रयोग होने वाले हथियारों का गोदाम। इसीलिए यदि यहाँ के निवासियों को सच्चा मुसलमान कहा जाए तो कुछ ग़लत नहीं होगा।

ये तो था इलाके का कच्चा चिट्ठा। अब आगे की बात कहते हैं। टीवी पर पूरे दिन यही चलता रहा आतंकी गिरफ़्तार हुआ पर मैं कहता हूँ अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हुआ। अरे भई जब वो अपने मज़हब की राह पर चल रहे थे तो पुलिस ने उनकी राह में रोड़ा क्यों अटकाया। शायद सरकार नहीं चाहती कि इस्लाम का ठीक ढंग से पालन हो सके। शायद पुलिस काफ़िरों (हिंदुओं) को बचाना चाहती है उन सच्चे मुसलमानों के हाथों से मरने से जो हमें मारने के नए नए तरीके ईजाद करते हैं।

चलो आतंकियों को तो मौत के घाट उतार दिया गया लेकिन अपने ही धर्म के उन लाखों विभीषणों और जयचंदों का क्या करें जो मुलमानों के साथ एकता के गीत गा रहे हैं। अरे ज़रा देखो इनके लोगों को ये लोग १९ सितंबर २००८ के एनकाउण्टर को फ़र्ज़ी बता रहे हैं। पुलिस का एक इंस्पेक्टर शहीद हो गया लेकिन इनका कहना है कि वो आतंकी दहशतगर्द नहीं बल्कि छात्र थे। मैं भी कहता हूँ वो छात्र थे। किसी स्कूल के नहीं बल्कि मदरसे के और कुरान पढ़ कर रट कर बड़े हुए थे। नहीं तो इनके अलावा कौन सा ऐसा स्कूल है जो पुलिस पर फ़ायरिंग की ट्रेनिंग देता है।

बात सोचने की है सोचो, तोलो और मत बोलो क्योंकि हम धर्म निरपेक्ष राष्ट्र हैं। जिसमें इन बर्बर आक्रान्ताओं, अल्लाह को माने वालों को तो अपनी हैवानियत फैलाने का पूरा हक़ है पर हिन्दू को सच कहने का नहीं।

बुधवार, 17 सितंबर 2008

सोच का फ़र्क

मैंने हिंदू और मुसलमान दोनों ही अध्ययन किया और ये जानने की कोशिश की कि हम हिन्दू उनसे इतना क्यों पीछे हैं.... आमतौर पर हमारे कई हिन्दू ये नहीं मानेंगे पर मैं मानता हूँ कि हमारा धर्म हमारी क़ौम कमज़ोर है। क्यों? क्योंकि हमारे बच्चे धर्म से ज़्यादा रोटी कपड़ा और मक़ान के सपने देखते हैं।



मैंने देखा है एक मुसलमान चाहे वो डॉक्टर हनीफ़ या तौक़ीर जैसा सच्चा मुसलमान न भी हो तब भी क़ौम को नहीं भूलता। जब इनके चार लोग कहीं भी बैठते हैं तो चाहे वो रिक्शे वाले हों या फिर प्रबुद्ध जन अपनी क़ौम के हक़ की बात करते हैं। चाहे उठंगा पायजामा या दाढ़ी न भी रखें पर क़ौम ही सर्वोपरि रहती है।



लेकिन एक हिंदू अपने आप को 'लिबरल' दिखाने में ज़्यादा दिलचस्पी लेता है। मात्र पाँच हज़ार रुपए की नौकरी हो तब भी पार्टी करने की सोचता है। अपने आराम में ख़लल न पड़े इसलिए हमेशा एकता और साम्प्रदायिक सद्भावना जैसी बात करता है।

अरे मेरे भाइयों ज़रा सोचो जिस दिन ये लोग पाकिस्तान के अपने भाइयों को यहाँ बसाएँगे, इन मुसलमान डॉक्टरों, इंजीनियरों के बम हम पर चलाए जाएँगे, तब तुम पार्टी कर पाओगे, मौज मस्ती कर पाओगे।

ज़रा सोचो हिंदुस्तान के इन करोड़ों आईएसआई एजेंटों से क्या तुम सुरक्षित हो? ऐसे कई तौक़ीर और हनीफ़ हमारे बीच हैं जो लगभग हज़ार साल से हमारी मातृभूमि के सीने पर मूँग दल रहे हैं। ये लोग दिन में भाईचारे की बात करते हैं और रात को दंगे और आतंक की फ़सल बोते हैं पर हम मस्त हैं बिना सोचे समझे कहते हैं ईश्वर अल्लाह तेरो नाम।

इन लोगों को धर्म निरपेक्षता यहीं सूझती है इस भारत भूमि पर क्योंकि यह दारुल हरब (जहाँ मुसलमान अल्पसंख्यक हों) है। पर पंथ निरपेक्षता किसी मुसलमान देश में नहीं अपनाई जाती वहाँ सब कुछ क़ुरान के अनुसार होता है।

वो हमें मारे हमारा क़त्ले आम करें पर किसी के कानों पर जूँ तक नहीं रेंगती। क्योंकि हमारे धर्म के साथ राजनीति हो रही है और देशद्रोहियों को दावतें दी जा रही हैं। अब भी जाग जाओ नहीं तो ये रक्तबीज देश को दीमक की तरह चाट जाएँगे तब तुम्हारा ये एकता का अलाप विलाप में बदल जाएगा। सोचो तब क्या करोगे?

सोमवार, 15 सितंबर 2008

महँगा पड़ेगा भाईचारा



हे महामूर्ख हिंदुओं मैंने तुम्हें कई बार ‘पवित्र’ रमज़ान के मौक़े पर देशद्रोहियों के साथ इफ़्तारी करते देखा है। बहुत अच्छी बात है। सर्वधर्म समभाव और परस्पर प्रेम फैलाने का ठेका तो सालों से तुमने उठाया है और आगे भी उठाते रहोगे। हो सकता है कल को तुम धर्म निरपेक्षता के नाम पर उनकी जूठन भी चाट जाओ।

हे
चिकन कोरमा और दो पूड़ी के लालच में बिकने वालों ज़रा ग़ौर से देखो इन म्लेच्छों की शक़्लों को... इनकी दाढ़ियों और इनके पर्दे में उस ख़ौफ़ को पढ़ो... इनकी सूरतों से टपकने वाली जेहाद को देखो... फिर सोचो क्यों तुम इनकी मदद करके अपने ही धर्म के दुश्मन बन रहे हो... क्यों तुम किसी अनवर, अशरफ़ या इक़बाल को भाई बोलते हो... क्या उन्होंने तुम्हें भाई माना है?

हर बार एक धमाका होता है और हर बार निर्दोष हिंदू मारे जाते हैं.. हर त्रासदी के पीछे कोई न कोई अबू, इब्राहीम या नईम ही होता है... पर जब तक तुम पर नहीं बीतती तब तक तुम शोरबे के चटखारे लेते हो।

कबाब की टँगड़ियाँ तोड़ने से पहले एक बार सोचो ये लोग अगर ऐसे ही बढ़ते रहे तो तुम्हारी भी टाँगें ऐसे ही तोड़ी जाएँगी... तुम्हारे घर की अस्मत तार तार होगी.... यदि समय रहते इन लहराती दाढ़ियों और चमकती टोपियों का कुछ नहीं किया गया तो क्या होगा इसकी कल्पना भी कठिन है.... भारत को श्मशान बनने से बचाओ... इनसे संबंध रखने से पहले अपनी माँ और मातृभूमि के बारे में एक बार सोचो।