अब मुझे यह सिद्ध करने की लेशमात्र भी आवश्यकता नहीं कि इसलाम और मार्क्सवाद इस देश के दो सबसे बड़े ख़तरे हैं। ये दोनों ही समुदाय अपनी कलुषित मानसिकता और विषाक्त विचारों से समाज को दूषित करने का घोर प्रयत्न निरन्तर करते रहते हैं। यह लोग हमेशा सच्चे राष्ट्रप्रेमियों को उनके मार्ग से डिगाने का भी प्रयास करते रहते हैं। इन लोगों में तार्किक शक्ति का सर्वथा अभाव रहता है। विचारों का कोई आधार नहीं होता। हो भी कैसे? देश की नींव खोदना जिनका लक्ष्य हो उनके विचार का आधार ढूँढना मूर्खता ही कहा जाएगा। और इनका साथ देने वाले सेक्युलरवादी तो इतने घाघ हैं कि तार्किक स्तर पर पिटने के बाद भोलेपन का चोगा ओढ़ लेते हैं।
वाद विवाद में जब यह सिद्ध हो जाता है कि हर सच्चा मुसलमान सच्चा राष्ट्रद्रोही है तो बेचारे सेक्युलरवादी बचने का कोई रास्ता न देखकर हम जैसे राष्ट्रवादियों से ये पूछते हैं कि अगर आप ही किसी मुसलमान के घर पैदा हो जाते तो क्या होता?
आमतौर पर कोई भी देशभक्त इस प्रश्न पर भड़क उठता है। पर मैंने जब यह प्रश्न अपने आप से पूछा तो जो उत्तर आया उसने मुझमें नई ऊर्जा और नए वैचारिक प्रकाश का संचार किया। अपना यही अनुभव मैं आप सब देश प्रेमियों के साथ बाँटना चाहता हूँ।
मैंने पाया कि हमारा भारतीय होना या हिन्दू होना भाग्यवश नहीं। भारतीयता हमारे लिए विधाता का एक वरदान है। हम जानते हैं कि प्रकृति सर्वश्रेष्ठ को चुन लेती है और इसी परम पूजनीया वसुन्धरा -जिसे हम भारत माता कहते हैं- के लिए ही उसने हमारा चयन किया है। हमें जन्मना हिन्दू बनाकर जो उपकार हमारी मातृभूमि ने हम पर किया है उससे कभी भी उऋण नहीं हुआ जा सकता। यह हमारे कई जन्मों की तपस्या का फल है।
इसीलिए हमारी सारी भावनाएँ तो इसी धरती से जुड़ी हैं। हमारा मन तो इसी पवित्रतम भूमि के प्रति कृतज्ञता में सराबोर है। हमारा रोम रोम इस धरा से उपकृत है। हम मानते हैं कि हमारा शरीर इसी मिट्टी से बना है। हम अरबी, तुर्क, फ़ारसी या ऐसी ही किसी म्लेच्छ जाति के वंशज भी नहीं। हमारा रक्त शुद्ध है। तो राष्ट्रभक्तों!! हम किसी ऐसी कौम में कैसे जा सकते थे जो मातृभूमि के विरुद्ध बारूद इकट्ठा करने में लगी है। हम कैसे किसी मुसलमान के घर पैदा हो सकते थे? अपनी आस्था के लिए साऊदी अरब की ओर कैसे झुक सकते थे? राष्ट्रगीत की अवमानना करने वाली गद्दार कौम में कैसे शामिल हो सकते थे? कैसे हम देश की जड़ें खोदने वाले लोगों के यहाँ जा सकते थे?
इसलिए हे हिन्दुओं अपने धर्म का सम्मान और देश पर गर्व तुम्हारा अधिकार ही नहीं कर्तव्य भी है। क्योंकि एक दिन यही पवित्र विचार हमारी मातृभूमि को इसलाम के कलंक से मुक्ति प्रदान करेंगे।
वन्देमातरम्।
शुक्रवार, 14 नवंबर 2008
सदस्यता लें
संदेश (Atom)