शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2008

हर बार मुसलमान ही ग़द्दार।

हे देशप्रेमियों!

हमने देखा पिछले कुछ महीनों से इस्लामपरस्तों ने अपने देशद्रोह का परिचय किस तरह दिया। कभी बम धमाके करके तो कभी आतंकवादियों को श्रद्धांजलि दे कर। जब जब निर्दोष हिन्दू मारे गए तब तब हमने किसी तौकीर, किसी अबू बशर को उस घटना के पीछे हँसता हुआ पाया। पर किसी ने नहीं सोचा कि ये मुसलमान हर बार इतनी शिद्दत से गद्दारी और पशुत्व की नई बुलन्दियाँ छूने की प्रतिभा और साहस लाते कहाँ से हैं? क्यों यह भारतभूमि इन्हें अपनी सी नहीं जान पड़ती?

मैं बताता हूँ। हर मुसलमान जब सजदे के लिए झुकता है तो उसका मुँह मक्का की ओर रहता है। मक्का यानी सऊदी अरब। रसूल के भेड़ियों का देश। जब किसी की आस्था के तार वहाँ से जुड़े हों उससे भारत से वफ़ादारी की उम्मीद रखना किसी समझदार व्यक्ति का काम तो हो नहीं सकता।

भारत का हर मुसलमान चाहे वो शिया हो या सुन्नी ये मानता है कि उसकी जड़ें यहाँ नहीं अरब, फ़ारस या ऐसे ही किसी म्लेच्छ बहुल देश में है। जबकि हर कोई जानता है कि जो मुलमान भारत में पाए जाते हैं उनके बाप दादा या तो तलवार के डर से या फिर चंद हड्डियों के लालच में मुसलमान बन गए थे। पर इनमें कोई ये मानने को तैयार नहीं कि वो मूल रूप से भारतीय है। कोई कहता है हम तो तुर्क हैं, कोई अपने आपको पठान मानता है, कोई अरब के क़ुरैश क़बीले से अपने तार जोड़ता है।
हालाँकि ये अलग बात है चाहे वो तुर्क हों या अरबी इनसे कोई सम्बन्ध नहीं रखना चाहते। हिन्दुस्तान की ये देशद्रोही क़ौम जब हज पर जाती है तो वहाँ इनका स्थान सबसे पीछे होता है। और वो काला पत्थर इन्हें छूने तो क्या देखने की इजाज़त भी नहीं होती। तो कुल मिलाकर इनकी हालत कुछ कुछ धोबी के एक पशु जैसी है। अपनी मातृभूमि से गद्दारी भी की, रसूल के बन्दों ने भी नहीं अपनाया।
यानी गुनाह -बेलज़्ज़त

तो देशभक्तों, हमें यह समझ लेना चाहिए कि इस देश में यदि कोई देश की असली सन्तान हैं तो वो हम हिन्दू हैं। हमारे पास रक्त की शुद्धता भी है और मिट्टी का अभिमान भी। हमें एक लड़ाई लड़नी है, एक क्रान्ति लानी है क्योंकि हम जानते हैं कि हमारी भारत भूमि ही हमारे अस्तित्व का एकमात्र विकल्प है। इसके अलावा कोई सहारा नहीं।

अगर देर की तो रसूल और अल्लाह की विकृत मानसिकता वाले ये म्लेच्छ हमारी इस परम पूजनीया मातृभूमि को कलंकित करने का प्रयास करेंगे और हमारे पास सिवाय आत्महत्या के कोई और चारा नहीं रहेगा।
आपकी टिप्पणियों की प्रतीक्षा रहेगी।



14 टिप्‍पणियां:

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

आप ऑनलाइन हो तो मुझे pramendraps@gmail.com पर मुझे मेल करे, मै आपसे बात करना चाहता हूँ।

बेनामी ने कहा…

aapne galat samajha, mera matlab tha yadi aap sach me hindu ke hiteishi hai to apko sabse pahle hindulism ko samajhna hoga. mai ek hindu hun or bharat ko hindu rashtra hone ka support karta hun, par esaka matlab ye nai ki hawa me baat karu. rss or vhp sab ke bichardhara ko follow karta hu, or technically es sangthan se juda hua hu. par sabse badi bat hoti hai aap apna role dekhiye or use sahi tarah apni focuss kijiye. maine apko pahle bhi kaha tha mai ek hindu hu or hindulism ki baat jamini taur par karta hu. aap hamare sath aa sakte hai.

dhnyabad

Satyajeetprakash ने कहा…

मैं घोषणा करता हूं कि मैं एक हिंदू हूं, हिंदू इसलिए कि यह हमें स्वतंत्रता देता है, हम चाहें जैसे जिए. हम चाहें ईश्वर को माने या ना माने. मंदिर जाएं या नहीं जाएं, हम शैव्य बने या शाक्त या वैष्णव. हम चाहे गीता का माने या रामायण को, चाहे बुद्ध या महावीर या महात्मा गांधी मेरे आदर्श हों, चाहे मनु को माने या चार्वाक को. यही एक धर्म है जो एक राजा को बुद्ध बनने देता है, एक राजा को महावीर, एक बनिया को महात्मा, एक मछुआरा को वेदव्यास. मुझे अभिमान है इस बात का कि मैं हिंदू हूं. लेकिन साथ ही मैं घोषणा करता हूं कि मुस्लिम धर्म और ईसाई धर्म भी मेरे लिए उतने ही आदरणीय हैं जितना हिंदू धर्म. पैगम्बर मोहम्मद और ईसा मसीह मेरे लिए उतने पूज्य हैं जितने कि राम. लेकिन मैं फिर कहना चाहूंगा कि मैं हिंदू हूं, क्योंकि हिंदू धर्म मुझे इसकी इजाजत देता है. अच्छे मुसलमान और ईसाई से मैं उतना ही प्रेम करता हूं जितना एक अच्छे हिंदू से. लेकिन एक बूरे हिंदू से मैं उतना ही दूर रहना चाहूंगा, जितना एक बूरे मुसलमान और ईसाई से. हिंदू धर्म कम से कम मुझे यही सिखाता है. इस सीख, इस समझ के लिए मैं आजीवन हिंदू धर्म का आभारी रहूंगा.
मेरा मंतव्य साफ है कि न तो सभी हिंदू बूरे और न ही सभी मुसलमान और ईसाई ही. लेकिन हमारे देश के नब्बे प्रतिशत नेता सिर्फ बूरे की श्रेणी में ही नहीं, गद्दार की श्रेणी में भी आते हैं. वे राष्ट्र द्रोही हैं और सत्ता के लिए देश को बेचने के लिए भी तैयार हैं.
इन नेताओं में ज्यादातर कांग्रेस पार्टी, कम्युनिष्ट पार्टी, समाजवादी पार्टी, लोक जनशक्तिपार्टी और राजद के नेता शामिल हैं.
धर्म-निरपेक्षता के नाम पर ये लोग अपना वोट बैंक बनाने में लगे रहते हैं.
मुसलमानों को मुख्यधारा की शिक्षा में शामिल नहीं कर उनके मदरसों के लिए फंड जारी करते हैं. वे नहीं चाहते हैं कि वे मुख्य धारा की शिक्षा में शामिल हों और देश का नागरिक बने. वे चाहते हैं कि वे सिर्फ उनका वोटबैंक बने रहें.
मुसलमानों को एक आम भारतीय नहीं मानकर, उनके लिए धर्म के आधार पर विशेष पैकेज जारी करते हैं.

परेश टोकेकर 'कबीरा' ने कहा…

साहब मेंरा भी आपसे यही प्रश्न है कि हर बार मुसलमान ही गद्दार क्यों?
काश्मीर का हिन्दू राजा पाकिस्तान की गोद जा बैठा, फलस्वरूप काश्मीर का बटवारा तक हो गया। भारत के वफादार हिन्दू महासभा वाले देशभर में राजा के इस निर्णय को ईश्वरीय निर्णय मान जस्टीफाई करते फिर रहे थे,लेकिन फिर भी मुसलमान गद्दार क्यों?
कायर सावरकर व अटल जी जैसे जिंदगीभर अंग्रेजो से माफीनामों पर माफीनामें मांगते फिरे उधर अशफाक उल्ला, रामप्रसाद बिस्मिल व नास्तिक भगतसिंह फासी के फंदे को चुम रहे थे, अपने पिता को माफी मांगने पर लताड रहे थे, फिर भी मुसलमान गद्दार क्यो?
अब्दुल कलाम आजाद देश के बटवारे को रोकने के लिये रात दिन एक किये हुवे थे वही हेडगेवार व कायर सावरकर जिन्ना के सूर में सूर मिलाकर हिन्दू व मुस्लिमों को दो राष्ट्र सिद्ध करने में लगे हुवे थे, फिर भी मुसलमान गद्दार क्यों? गांधी की हत्या भी किसी कायर हिन्दू आतंकी ने की, इंदिरा की हत्या भी आपके हिन्दूवो ने की (आप चाहे लाख कहे सिंख अपने को हिन्दू नहीं मानते है, आपके भाजपा वाले उन्हें हिन्दू कहने का अंजाम भुगत चुके है), राजीव की हत्या हिन्दू कहलवाने वाले लिट्टे के आतंकीयो ने की, फिर भी मुसलमान गद्दार क्यो?
अरे भाई आपको अरब से बडी घृणा है, तो अरबीयों के दिये शब्द पर गर्व करते काहे फिरते हो। जिस तरह अश्वेतो के लिये निग्रो शब्द का गाली के रूप में इस्तेमाल होता था उसी तरह अरबी हिन्दू शब्द का उपयोग गाली के तौर पर करते थे। आप अमेंरीका जा किसी अश्वेत को निग्रो कहकर देखिये सब समझ में आ जायेगा। आप चाहे हिन्दू होने पर गर्व करे पर हमें तो शर्म व गुस्सा आयेगा अगर कोई हम हिन्दू कहे। ये हिन्दू क्या होता है जरा इसका मतलब तो बताये। अगर सच्चे हिन्दू या हिन्दूत्ववादी हो तो किसी भी वैदिक ग्रंथ, वेद पुराण मिथको मैंसे हिन्दू या हिन्दूत्व शब्द निकाल कर दिखा दो।

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

आपके खूबसूरत ब्लॉग पर सैर कर आनंद हुआ आपका ब्लॉग जगत में स्वागत है निरंतरता बनाए रखे
मेरे ब्लॉग पर पधार कर व्यंग कविताओं का आनंद लें
मेरी नई रचना दिल की बीमारी पढने आप सादर आमंत्रित हैं

लोकेश Lokesh ने कहा…

हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई

गद्दार तो हर समाज में हैं, ज़नाब

Unknown ने कहा…

जहाँ तक मेरी जानकारी है कभी मुसलमानों को गद्दार नहीं कहा गया. धर्म के नाम पर जो आतंक हो रहा है उस से कुछ मुसलमान सम्बंधित पाये जा रहे हैं, ऐसा जरूर कहा गया है.

main chup nahi rahonga ने कहा…

mere hindu hitlar,
baate jhar bujhi,aur apni pahchan chhupi . jra apnee pahchaan btao dost tabhi maza aayega

परेश टोकेकर 'कबीरा' ने कहा…

प्रखर हिन्दूत्व जी मोहल्ला में आपने रामप्रसाद बिस्मिल का जिक्र किया जिनका दाया हाथ शहीद अशफ़ाकउल्ला थे। कृपया करके अपनी देशबाटु सांप्रदायिक सोच को आजाद बिस्मिल भगतसिंह की क्रांति की अवधारणा से जोडने की धृष्टता न करे। असली सामाजिक शत्रु तो ये हिन्दूत्ववादी है जो अपने फायदे के लिये क्रांतिकारीयों तक का सांप्रदायिकरण करने पर तुले है। देश के सामाजिक शत्रु अर्थात मुर्ख हिन्दूत्ववादीयों की सदबुद्धि के लिये शहीद रामप्रसाद बिस्मिल के अंतिम संदेश के कुछ अंश प्रस्तुत है -
"अशफ़ाकउल्ला को सरकार ने रामप्रसाद का दाया हाथ बताया है। अशफ़ाक कट्टर मुसलमान होते हुवे भी रामप्रसाद जैसे कट्टर आर्यसमाजी का क्रांति में दाहिना हाथ हो सकता है तो क्या भारत के अन्य हिन्दू-मुसलमान आजादी के लिये अपने छोटे मोटे लाभ भुला एक नहीं हो सकते है? अशफ़ाक तो पहले ऐसे मुसलमान है जिन्हें कि बंगाली क्रांतिकारी पार्टी के संबंध में फासी दी जा रही है। ईश्वर ने मेरी पुकार सुन ली। मेरा काम खत्म हो गया। मैने मुसलमानों में से एक नौजवान निकालकर हिन्दुस्तान को यह दिखा दिया है कि मुस्लिम नौजवान भी हिन्दू नौजवानों से बढ चढकर देश के लिए बलिदान दे सकता है और वह भी सभी परीक्षाओ में सफल हुआ। अब यह कहने की हिम्मत किसी में नहीं होनी चाहिए कि मुसलमानों पर विश्वास नहीं करना चाहिए। यह पहला तजुर्बा था जो पुरा हुआ।"
वे आगे लिखते है कि - "अब देशवासियों के सामने यही प्रार्थना है कि यदि उन्हें हमारे मरने का जरा भी अफसोस है तो वे जैसे भी हो, हिन्दू-मुस्लिम एकता स्थापित करें - यही हमारी आखरी इच्छा थी, यही हमारी यादगार हो सकती है। "
साथ ही वे यह जोडना भी नहीं भुलते है कि - "जो कुछ मैं कह रहा हू, ठीक वही श्री अशफ़ाकउल्ला खान वारसी का विचार है।"

आपसे पुछे अपने प्रश्नो के जवाब के इंतजार में...

अमित माथुर ने कहा…

जय माँ भारती, अब ये ब्लॉग कुछ सही हिन्दुओ के हाथ लगा है. टिप्पणिया मूल लेख से अधिक रोचक हों तो ब्लॉग सिर्फ़ एक ब्लॉग नहीं सच-मुच क्रांति की ज्वाला बन सकता है. प्रखर हिंदू के ब्लॉगर से निवेदन है कृपया अपना नाम तो बताइए. हम जानते हैं आप एक प्रतिष्ठित चैनल में पत्रकार हैं मगर हम आपको किसी नाम से संबोधित करने के इच्छुक हैं. आपके कार्य को देखते हुए तो आपकी इस खतरनाक और सौ प्रतिशत सांप्रदायिक दुर्भावना से हमारी माँ भारती का नुक्सान होने की संभावना बढ़ गई है. अगर आपके हाथ में लेखनी ना होती तो और बात थी मगर ये अचूक अस्त्र हमारे राष्ट्र का नुक्सान तो करेगा ही साथ ही साथ हमारे महान सनातन धर्म का भी कोई भला नहीं होने देगा. -अमित माथुर

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

Jaari rakhe
Kabeera g ki tippani tarksangat hai
amit g ki yah baat bhi sahi hai aap swayam ko chhipa kyon rahe hain
khair
jaari rakhe

Jitendra ने कहा…

musalmano ke khilaf koi himat karke samne nahi ata na isiliye wo aise kam karte rehte hain kyonki unko bhi pata hai ki koi kuch karne wala nahi, bharat me koi bhi aisa insan nahi jo unke khilaf bol sake ya lad sake. hindustani sirf likhna aur batain karna hi jante hain, ladna bhool gaye hain, koi maai ka laal samne hi nahi ata. sab ye sochte haiun ki hum kiske sath lade koi hai hi nahi ladne wala wo akela kya kar lega...agar koi himmat karke bolne lage media ke samne ki musalman hamare dushman hain unko bharat se bhaga dena chahiye to use marwa diya jayga ya jail me dal diya jayga kyonki hamare desh ke neta log bhi musalman hain achi post par hain. ab kare to kya kare or kon kare. itni himmat to musalmano me hai ki wo apni kurbani de dete hain hum hindustaniyo me kahan. bhool gaye hain hum apne aap ko ki desh ke liye jaan bhi di ja sakti hai.

Unknown ने कहा…

क्या करें सर हम हिंदुओं में भी कुछ तुम जैसे जयचंद हैं

Unknown ने कहा…

yed