इस राष्ट्र के जनतन्त्र घोषित होने के बाद कई राजनीतिक दलों ने जनता के माध्यम से अपना उल्लू सीधा करने के लिए जनसाधारण की अल्पबुद्धि को ही अपना हथियार बनाना उचित समझा। अपने अपने ढंग से वायदे. कायदे समझाए गए और सत्ता प्राप्ति के प्रयास निर्लज्जता से किए जाने लगे। गरीबी हटाओ से लेकर हिन्दुत्व लाओ तक कई मुद्दे लाए गए पर खेद के साथ कहना पड़ता है कि न तो ग़रीबी गई न हिन्दुत्व आया। सत्तालोलुप नेताओं के लिए पहले आलेखों में भी बहुत कुछ लिखा जा चुका है इसलिए उनके चरित्र का वर्णन पुन: करना निरर्थक है।
हर साधारण व्यक्ति यह जानता है कि देश के नेता जिस गति से राष्ट्र को पतन की ओर ले जा रहे हैं उसके परिणाम क्या होंगे। फिर भी वह विवश है। क्योंकि उसके पास कोई विकल्प नहीं। वो सिर्फ़ ये कहके संतोष कर लेने पर मजबूर है कि सब चोर हैं और जो चल रहा है वैसे ही चलता रहेगा। आम आदमी परिस्थितियों में परिवर्तन की आशा लगभग छोड़ चुका है। पेज थ्री के लोग यानी आचार विचार रहित जनता जो देश की जनसंख्या का मात्र 6% ही है, मौज काट रही है। मुसलमान और मार्क्सवादी देशद्रोह के नए नए आयाम तलाशने में जुटे हैं और प्रतिदिन नीचता के नए कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं।
पर स्थिति को बदलना होगा। परिस्थितियों में परिवर्तन आवश्यक है। और ये सब कैसे होगा मैं बताता हूँ।
आज भारत माता के इस मुश्किल वक्त में जहाँ हमें 16 करोड़ आईएसआई के एजेण्टों अर्थात् सच्चे मुसलमानों के बीच रहना पड़ रहा है वहीं ग़द्दार साम्यवादियों को झेलना हम सबकी मजबूरी है। देश को सेक्युलरवादियों से भी ख़तरा है पर परिस्थितिवश हमें इनके साथ रहना ही पड़ता है। स्थिति जटिल अवश्य है पर अपरिवर्तनीय नहीं। इसको बदलने के लिए हम सबको आगे आना होगा। और हमें किसी भी कुर्सी का मोह त्यागना होगा। लड़ाई सत्ता के लिए नहीं अपितु विचारधारा के लिए लड़ी जाएगी, देशहित के लिए लड़ी जाएगी। जंग देश के तमाम आत्महत्या करने पर मजबूर किसानों के लिए होगी, उन जवानों के लिए होगी जो देश के लिए बलिदान देने को तत्पर रहते हैं। उस सरकारी कर्मचारी के लिए होगी जो जीवन भर कलम घिसता रहता है और पीएफ़ की दरें बढ़ने पर ही खुश हो जाता है।
राष्ट्रप्रेमियों यदि हम अपने ये मुद्दे जनता को भली भाँति समझा पाए तो सत्ता के लिए किसी संघर्ष की आवश्यकता ही नहीं रह जाएगी। हमारे इरादे और हमारे विचार साफ़ हैं। हमें किसी प्रकार की न तो कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा है न ही सत्ता की कोई लिप्सा। भले ही सफलता प्राप्ति में हमें थोड़ा समय लगे, थोड़ा संघर्ष करना पड़े पर हम सफल होंगे ही ऐसा मेरा मानना है। बस हमें तर्कसंगत बात को अपनाना है और ये समझ लेना है कि कोई भी कानों को अच्छी लगने वाली बात जो किसी मुसलमान या मार्क्सवादी के मुख से निकली है वो अच्छी नहीं होगी क्योंकि वो अच्छी हो ही नहीं सकती। तब हम अपनी राष्ट्रवादी विचारधारा पर अटल अडिग रह पाएँगे अन्यथा अन्त निश्चित है।
Email Id: matribhoomibharat@gmail.com
शनिवार, 3 जनवरी 2009
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5 टिप्पणियां:
bouth he aacha post kiyaa aapne
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kosis karate rahiye.......ho sakta hai aap hi sahi ho.....par nirnay kaun lega ki aap kaha tak sahi hai....gussa to ata hai...par kay ye jayaj hai........aap bhi vichar kare..
बाक़ी शालीन टिप्पणीकर्ताओं का असर आप पर कितना होगा ये तो मैं नहीं जानता, पर मेरी टिप्पणी को कृपया गंभीरतापूर्वक लीजिए और अपने दिमाग़ का इलाज करवाइए.
App bahut acha likhte hai.........................
I had sent u a mail.......please reply me...
I am proud of u....
Keep writing.........one u will get sucess in ur misson .
Jai Hind!
Dear brothers and sisters dont follow these peole who are not foollowing BhagvadGita vedas and Purans. Lets follow the RAM and practices Vedas and Bhagwadgita which says that
"Ekam evadityam" means that " HE is One only without a secon"
"Na casya kascij janita na cadhipah" meas that Of HIM their are neither parents nor lord"
"Na tasya Pratima asti"- means that there is no likeness of HIM. He has no image,statue etc...
"Na samdrse tisthati rupam asya, na caksusa pasyati kas caniinam" means that HIS form is not to be seen, no one sees HIM with the eyes."
But dear brothers some of innocent people who dont know about our relegious scriptures started seeing Eeshwar in stones and made statue of Eeshwar which totally against the Bhagwad gita,veda and Purans.
Needless to say brother and sisters that natures greatest truth, the supreme truth of this cosmos, is that the creator and Organizer of the universe and its creatures is the ONE and only ONE Master, one EESHWAR.
Regds
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