देशप्रेमियों!!
आप सबकी जो टिप्पणियाँ और ईमेल मुझे प्राप्त हुए मैं उनका धन्यवाद देता हूँ। साथ ही साथ नए आलेखों के नित्य न जोड़े जाने से मुझे कई पाठकों से शिकायती पत्र भी प्राप्त हुए। हे सुधी पाठकों मैं क्षमाप्रार्थी हूँ जो इतने दिनों आपसे और इस ब्लॉग से दूर रहा। असल में मैंने सोचा कि लेखनी को थोड़ा विराम दिया जाए और थोड़ा गम्भीर मनन व चिन्तन किया जाए।
कल टीवी पर एक फ़िल्म आ रही थी। इसमें एक नायक एक मुसलमान से बड़े ही आक्रामक ढंग से पूछता है- कि ये हिन्दू का ख़ून, ये मुसलमान का ख़ून (मिलाकर) अब बता कौन सा खून हिन्दू का है, कौन सा मुसलमान का?
स्पष्ट है यह एक सेक्युलरवादी प्रपञ्च है जिसका प्रयोग तमाम मुसलमान और मार्क्सवादी हमारे हिन्दू भाइयों यानी राष्ट्रवादियों को भरमाने के लिए करते रहते हैं।
ये लोग चाहते हैं कि राष्ट्रनिष्ठ लोग इन्हीं की तरह ग़द्दार हो जाएँ और देश की अस्मिता को हरे लाल एजेण्डे से कलंकित करें। और मुझे दु:ख तो तब होता है जब लोग इनके झाँसे में आ जाते हैं। क्योंकि विशाल जनसमूह के पास सोचन समझने की शक्ति अत्यन्त न्यून होती है। वो बात को समझने के लिए तर्क की बजाय भावनाओं का सहारा लेता है और इसी बात की प्रतीक्षा ज़हरीले मुसलमानों और कम्युनिस्टों को सदैव रहती है।
अब मैं बताता हूँ कि हिन्दू और मुसलमान के ख़ून में क्या फ़र्क है। कहा गया है-
काक: कृष्ण: पिक: कृष्ण: कोभेद: पिककाकयो:।
वसन्तकाले सम्प्राप्ते काक: काक: पिक: पिक:।।
जैसे कौआ और कोयल दोनों काले होते हैं और इनमें भेद करना बड़ा मुश्किल होता है पर वसन्त ऋतु के आते ही जब कोयल मधुर गाती है और कौआ काँय काँय करता है तो असलियत का पता चल जाता है।
ऐसे ही जब जब देश में विषम परिस्थितियाँ आती हैं तब तब मुसलमान अपने रक्त का असली रंग दिखा देते हैं। चाहे 1947 का बँटवारा हो या फिर देश में बढ़ रहा आतंकवाद। सारे मुसलमान समवेत सुर में राष्ट्र का विरोध करने लगते हैं। इमाम दहाड़ते हैं। मुसलमान इंजीनियर बम बनाते हैं और अशिक्षित वर्ग बम रखता है या फिर दंगे करता है। हिन्दू सीमा पर लड़ता है तो कभी सच्चे मुसलमानों के साथ एनकाउण्टर में शहीद होता है।
हमारे और उनके ख़ून की फ़ितरत में फ़र्क है जो सामान्य रूप से दृष्टिगोचर नहीं होती पर जब जब थोड़ा अव्यवस्था का माहौल पनपता है मुसलमानों के रक्त में पड़े ग़द्दारी के बीजों को खाद पानी मिल जाता है और फिर वो अंकुरित हो उठते हैं। फिर मदरसों में पढ़ने के बाद इसलाम की पौध तैयार होती है जो अल-क़ायदा और कई ऐसे ही नुक्ते वाले संगठनों की धन वर्षा के बाद देशद्रोह की फ़सल बन कर में लहलहा उठती है।
इसलिए देशभक्तों राष्ट्रभक्ति के मार्ग से कभी न भटको, सेक्युलरवादियों के प्रपंच से भावावेग द्वारा नहीं तर्क से निपटो।
आपकी टिप्पणियों की प्रतीक्षा रहेगी। आप ईमेल पर भी सम्पर्क कर सकते हैं।
पता है: matribhoomibharat@gmail.com
भारत माता की जय!!
गुरुवार, 20 नवंबर 2008
सदस्यता लें
संदेश (Atom)