बहुत सही बात है। अल्लामा इक़बाल (जो स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान चले गए थे) का गीत सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा बरसों से गाया जाता रहा है। ऐसे में किसी ने उस गाने को ठीक से समझने की कोशिश नहीं की।
इक़बाल साहब लिखते हैं- ‘मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना’ तो हम भी सोच में पड़ जाते हैं कि कौन सा ऐसा धर्म होगा जो नफ़रत सिखाता होगा? पर मूर्खता की पराकाष्ठा तक भोले भाले हिन्दुओं को कौन समझाए कि सच्चाई क्या है।
यहाँ मज़हब का मतलब क़ुरआन से लिया गया है। कुरआन में लिखा है-
“मुहम्मदुर्रसूलुल्लाहे वल्लज़ीना मआहु अशिद्दाओं अलल्कुफ़्फ़ारे रोहमाओ वैनहुम”
कुरआन पारा 26 रकू 4/12 मु. फ़हे
इसका मतलब है कि मुहम्मद ही अल्लाह का सच्चा रसूल है और जो मुसलमान (मोमिन) उसके साथ हैं वो आपस में दयालु हैं और काफ़िरों (इसलाम पर ईमान न लाने वालों) के लिए बहुत कठोर और कड़े हृदय वाले हैं।
इक़बाल साहब लिखते हैं- ‘मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना’ तो हम भी सोच में पड़ जाते हैं कि कौन सा ऐसा धर्म होगा जो नफ़रत सिखाता होगा? पर मूर्खता की पराकाष्ठा तक भोले भाले हिन्दुओं को कौन समझाए कि सच्चाई क्या है।
यहाँ मज़हब का मतलब क़ुरआन से लिया गया है। कुरआन में लिखा है-
“मुहम्मदुर्रसूलुल्लाहे वल्लज़ीना मआहु अशिद्दाओं अलल्कुफ़्फ़ारे रोहमाओ वैनहुम”
कुरआन पारा 26 रकू 4/12 मु. फ़हे
इसका मतलब है कि मुहम्मद ही अल्लाह का सच्चा रसूल है और जो मुसलमान (मोमिन) उसके साथ हैं वो आपस में दयालु हैं और काफ़िरों (इसलाम पर ईमान न लाने वालों) के लिए बहुत कठोर और कड़े हृदय वाले हैं।
ऐस में मज़हब सिखाता है कि मोमिनों आपस में कभी बैर मत रखो क्योंकि उससे काफ़िरों के हाथ ही मज़बूत होंगे।
एक और आयत इस प्रकार है-
“व मय्यंव्तग़े ग़ैरल्इस्लामे दीनन फ़लय्युंक्वलामिन्हो व हुवा फ़िल आखेरते मिनल्ख़ासिरीन”
कुरआन पारा 3 रकू 6-17
यह आयत कहती है कि जो इस्लाम (दीन) के अलावा कोई और मत स्वीकार करेगा और हज़रत मुहम्मद जो कि तमाम अन्य मज़हबों को निरस्त करने वाले हैं (उनकी आज्ञा नहीं मानेगा) तो उसे कभी भी स्वीकार नहीं किया जाएगा और ऐसा व्यक्ति परलोक में भी हानि उठाएगा।
एक और आयत इस प्रकार है-
“व मय्यंव्तग़े ग़ैरल्इस्लामे दीनन फ़लय्युंक्वलामिन्हो व हुवा फ़िल आखेरते मिनल्ख़ासिरीन”
कुरआन पारा 3 रकू 6-17
यह आयत कहती है कि जो इस्लाम (दीन) के अलावा कोई और मत स्वीकार करेगा और हज़रत मुहम्मद जो कि तमाम अन्य मज़हबों को निरस्त करने वाले हैं (उनकी आज्ञा नहीं मानेगा) तो उसे कभी भी स्वीकार नहीं किया जाएगा और ऐसा व्यक्ति परलोक में भी हानि उठाएगा।
इनका पन्थ कभी भी इनके छोटी सी सोच के दायरे से बाहर नहीं निकल सका जबकि हम लोगों की सोच हमेशा से ही वसुधैव कुटुम्बकम् रही। हमारा और इनका मेल हो सकता है भला। गंगा और किसी नाले का भला कोई साम्य हो सकता है?
मैं कहता हूँ मुहम्मद है क्या चीज़? जो हमारे धर्म को निरस्त कर देगा। ख़ैर अब तक तो वो और उसके बंदे मिलकर हमारे धर्म का कुछ विशेष नुक़सान कर नहीं पाए हैं पर हम कब समझेंगे इन लोगों के वहशीपन को? हम कब मिटाएँगे अपनी अज्ञानता को? कब जानेंगे कि हमारा धर्म सनातन है जिसका न कोई आदि है न अन्त। और इनका धर्म... क्षमा कीजिए पंथ किसी गडरिए का निरर्थक संवाद है। किसी अनपढ़ आदमी के दिमाग़ की उपज। थोड़ा समझिए और हिन्दुत्व क्रान्ति का आह्वान् कीजिए।