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पर हमने तो ये कसम खा रखी है कि हम नहीं सुधरेंगे। इस ग़द्दार क़ौम के साथ एकता और सद्भाव फैलाएँगे। और जैसा चल रहा है वैसा चलता रहेगा। फिर कल आतंकवादी हमला होगा फिर कुछ निर्दोष हिन्दू मारे जाएँगे, फिर से राष्ट्र के नाम प्रधानमन्त्री का मरियल सन्देश आएगा, फिर से शहीदों की याद में कुछ मोमबत्तियाँ जलेंगी और हम एक बार फिर एक नए हमले का इंतज़ार करने लगेंगे। सच्चा मुसलमान (अर्थात् धोखेबाज़ नागरिक) भी घड़ियाली आँसू बहाकर कर फिर ऐसे ही नए कुकृत्य के लिए असला जमा करने लग जाएगा। फिर से हमला होगा और इसी घटनाक्रम की पुनरावृति होती रहेगी।
अब समय किसी पर दोष मढ़ने का नहीं बल्कि राष्ट्र के असली शत्रु को पहचानने का है। ग़द्दारी और आतंकवाद तो मुसलमान की फ़ितरत है ही। वो कहाँ चुप बैठने वाला है? पर बहुसंख्यक होने के बावजूद यदि तुम उसे चुप न करा पाओ तो यह तुम्हारी कमी है। नृशंसता और पशुता तो मुहम्मद द्वारा सिखाई ही गई है पर तुम यदि ऐसे लोगों को भजन सुनाओ तो वो तुम्हारी मूर्खता है।
सच्चाई तो यह है कि अल्लाह के बन्दे एक बार फिर हँसे है और क़ुरआन के अनुसार उन्हें जन्नत मिलना तय है। आख़िर 186 काफ़िरों को मौत के घाट उतारने के बाद तो अल्लाह ने इन्हें इतना सबाब दिया होगा कि इनकी आने वाली पीढ़ियों को भी जन्नत का पासपोर्ट मिल जाएगा।
बस रोई है तो केवल भारत माता। रोए हैं तो हमारे तमाम हिन्दू भाई जो बिना बात के इस्लाम की बलि चढ़ गए। क्या तुम्हें इनका क्रंदन नहीं सुनाई देता। अगर नहीं तो तुमसे बड़ा नपुंसक इस पूरे विश्व में नहीं है। तुम ऐसे ही यदि सेक्युलर बनते रहे तो वो दिन दूर नहीं जब यह ऐसा ही नंगा नाच पूरे देश में दिखाएँगे। रसूल और अल्लाह की शिक्षा ऐसे ही फैलाएँगे। तुमने इस तथ्य को अभी भी नकारा तो ध्यान रखो अन्त समीप है।