बुधवार, 17 मार्च 2010

कौन सा युवा?

बहुत दिन से एक 40 वर्षीय नेता को युवा शक्ति के प्रणेता के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। युवा को सपने दिखाए जा रहे हैं। यानी उसको महान बता कर एक बार फिर उसके मताधिकार का दोहन करने का प्रयास किया जा रहा है। और भारत का युवा इसी को सच मान कर सपने देख भी रहा है। वह भ्रम में है कि उसके दिन बहुरने वाले हैं। भले ही आवश्यक वस्तुओं के दाम गगनचुम्बी भ्रष्टाचार से नित नई ऊँचाइयाँ छू रहे हों पर उसको यह लगता है कि कुछ तो अच्छा होने ही वाला है।



हे परम भोले भारत के युवा पहले ठीक से ये तो समझ लो कि उनके युवा की परिभाषा क्या है। तुम सोचते हो कि तुम युवा हो क्योंकि तुम्हारी आयु 18 से 35 के बीच है। तुम्हें लगता है कि ये युवा अधिकारों की बात करने वाले महाशय तुम्हें नौकरी दिलाएँगे और तुम इनकी बातों पर विश्वास भी कर लेते हो। पर कभी इनके मधुर भाषण पर मुग्ध होने की बजाय तुमने इनकी नीतियों और इनके दावों को विवेक के तराजू पर तोलने का प्रयास किया? कभी अनुभव की ससौटी पर उन्हें कसने की कोशिश की? नहीं। इतना हमारी फटाफट जनरेशन कहाँ सोचती है? और नहीं सोचती इसलिए हमेशा एक ऐसी भीड़ के रूप में पिसती रहती है जिसका राजनीतिक स्वार्थों पूर्ति के लिए दोहन किया जा सकता है।



खैर जो तुमने आज तक नहीं सोचा वो मैं तुम्हें बताता हूँ।
पहले तो यह सोचो कि तुममें औऱ उनके युवा में क्या अन्तर है। तुम तो दिन रात मरते खपते रहते हो कभी डिग्री पाने की आस में तो कभी नौकरी की तलाश में। तुम कभी पेज थ्री पार्टियों में भी कभी नहीं गए। बड़े बंगलों में घुसने का सौभाग्य तुम्हें कहाँ मिला है। लम्बी गाड़ियों को देखकर तुम बस आहें ही भर सकते हो। सपने भी तुम स्कूटर या बाइक के देखते हो। तुम कहाँ से युवा की उनकी परिभाषा में फिट बैठते हो? हाँ तब बात और थी यदि तुम्हारे पीछे कोई नाम होता। तुम्हारे पूर्वजों ने किसी वंश की चरण वन्दनाएँ की होतीं। अगर तुम्हारे नाम के आगे गाँधी लगा होता तो फिर तो चाँदी ही चाँदी थी। चलो यह तो किस्मत की बात थी पर तुम संगमा, प्रसाद, पाइलट में से कुछ तो हुए होते। हाय री किस्मत तुम तो मिडिल क्लास में हुए हो तो तुम्हें कहाँ अधिकार है कि तुम बड़ा बनने की इच्छा रख सको। तुम कहीं से उनके यूथ के मापदण्डों को पूरा नहीं कर सकते। वो राजा हैं, और चमचे भी हैं पर तुम उनमें से कुछ नहीं। इसलिए अपने अधिकारों के लिए संघर्ष और इच्छा दोनों का ही त्याग कर दो। ऐसा उनका मंतव्य है।

अतः हे युवाओं जागो। बहुत दिवास्वप्न देख लिए तुम्हारी शक्ति तुम्हारे विवेक और संघर्ष में निहित है। विवेक को जागृत करो और संघर्षरत हो जाओ। तुम्हारी अधिकार प्राप्ति केवल क्रान्ति से ही सम्भव है।