देशभक्तों,
पिछले लेख में जब साँई के पाखण्ड को मैंने सिद्ध किया उसपर मुझे कई प्रतिक्रियाएँ प्राप्त हुईं। कई साँई भक्तों ने भी मुझे ऐसा ‘पाप’ करने से मना किया पर इस प्रश्न का कोई उचित जवाब नहीं दे पाया कि साँईँ की भक्ति क्यों की जाए?
असलियत मैं बताता हूँ। तथाकथित भगवान साँई बाबा के भक्त दो तबकों में बँटे हुए हैं। पहला तबका वह है जिसने साँईं की मार्केटिंग की उसको बेचा और शिरडी को विश्व प्रसिद्ध कर दिया। इन व्यापारी भक्तों ने इतनी सफाई से सूर्य की रोशनी से लेकर वर्षा तक को साँई का एहसान बताया ताकि इनका पाखण्डी बाबा सोने के आसन पर बैठ सके। फिर क्या था? शिरडी के व्यापार की दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की को देख कर देश के कोने कोने में साँईं के मन्दिर खुल गए, चढ़ावे आने लगे। फिर इस साँईँभक्त वर्ग को लगा कि इस चीज़ को मीडिया और बढ़ा सकता है। फिर तो रातोंरात साँईँ की फोटो पर टँगी मालाएँ लम्बी होने लगीं। भक्त और बढ़े, चढ़ावा और आया, कैमरे आए, पत्रकार आए, इण्टरव्यू हुए और साईँ खुश हुआ। धन्धा और आगे चला और मज़े से बढ़ रहा है।
अब बात करते हैं दूसरे साँईँराम भक्त वर्ग की। यह वर्ग उन भक्तों का है जो निहायत ही भोले किस्म के हैं। ये लोग अपने स्वार्थ के लिए किसी भी बाबे को भगवान कहने से नहीं हिचकते, अपने घर की सुख समृद्धि के लिए किसी के भी चरण चाट सकते हैं, साँईं नामक मुसलमान के पैर पूजते हुए भी इनको लज्जा नहीं आती।
अरे साँईं भक्तों तुम प्रेत पूजा करके कितना निन्दनीय कार्य कर रहे हो तुम्हें नहीं मालूम। अब आँखें खोलो और जागो। आज हिन्दुत्व को एकता की आवश्यकता है। मैं फिर कहता हूँ कि भारत माता ही एक मात्र देवी है। साँईं एक छलावा है, ज़्यादा से ज़्यादा एक दलाल जो तुम्हें सुख देने का, भगवान के पास ले जाने का ढोंग करता है। जिससे उसके अनुयायी भोले भाले देशवासियों को लूटें और देश को कमज़ोर करें। छोड़ो ऐसे आध्यात्मिक घटियापन को और देश की पूजा करो। भारतीयता का जो वरदान तुम्हें मिला है उसका सम्मान करो।
भारत मात की जय!
मंगलवार, 23 जून 2009
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