कौन कहता है कि हिन्दुस्तान में एकता नहीं? कौन ये मानता है कि हमारे देश में भाईचारा नहीं? ज़रा अखबारों में देखो। किस तरह से दो आतंकवादियों के मारे जाने के बाद तीन हज़ार लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। उनकी ये एकता किसी के लिए भी एक उदाहरण हो सकती है। आज़मगढ़ में उन सच्चे मुसलमानों की शहादत की याद में ईद नहीं मनाई गई। मुसलमान गले नहीं मिले। सेवइयाँ नहीं बनी। इमाम ने कहा इसलाम ख़तरे में है।
अभी भी आपको इस कौम की बेशर्मी नहीं दिखी? या फिर से आपने एक आम हिन्दू की तरह नज़रन्दाज़ कर दिया? कभी आपके मन में ये बात उठी कि धमाकों में इतने हिन्दू मरे हैं तो हम दिवाली न मनाएँ? आप में इतना विवेक ही कहाँ है? आप तो ख़ुश हो गए कि चलो हम और हमारे परिवार तो इन धमाकों से सुरक्षित बच कर निकल आए। हमें तो चोट नहीं लगी। तो फिर चलो मॉल घूमने चलें। नई फ़िल्म देखें। और भगवान को ख़ुश करने के नवरात्र के व्रत की रिश्वत दे देंगे। सब ठीक हो ही जाएगा।
नहीं! कुछ ठीक नहीं होगा। ये सच्चे मुसलमान देश के सच्चे दुश्मन हैं। हर बार तुम्हें ऐसे ही मारेंगे। और कोई राम, कृष्ण, शिव, कल्कि तुम्हें बचाने नहीं आएगा। क्यों? क्योंकि तुम कर्महीन हो। तुम कभी क्रान्ति नहीं करना चाहते। चाहते भी हो तो ये कि अगर चन्द्रशेखर आज़ाद और राम प्रसाद बिस्मिल पैदा हों तो वो तुम्हारे घर नहीं पड़ोसी के यहाँ हों। अरे यही मूर्खता और कायरता हमें रसातल में पहुँचा देगी। तब मॉल घूम सकोगे, ये राग रंग चल पाएँगे?
इन नर पिशाचों पर दया करना धर्म नहीं, नीति नहीं। वेद के अनुसार
यदान्त्रेषु गवीन्योर्यद् वस्तावधि संश्रुतम्।
एका ते मूत्रम् मुच्यताम् बहिर्वालिति सर्वकम्।।
-अथर्व काण्ड १ सूक्त ३ मंत्र ६
अर्थात् जैसे कि आँतों में और नाड़ियों में और मूत्राशय के भीतर जमा मल मूत्र कष्ट देता है और उसको निकाल देने से चैन मिलता है वैसे ही मनुष्य को शारीरिक, आत्मिक और सामजिक शत्रुओं को निकाल देने से सुख प्राप्त करता है।
ये रक्तबीज मुसलमान भी ऐसे ही सामाजिक शत्रु हैं जिनके निकालने से हमारे देश को चैन मिलेगा। अभी भी इनको पालते रहे, इनके ज़ुल्मों के सहते रहे तो हमारा देश रोगी हो जाएगा। सोचो और विचारो।
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