शनिवार, 4 अक्तूबर 2008

हिन्दुओं! प्रण पालन करो


कौन कहता है कि हिन्दुस्तान में एकता नहीं? कौन ये मानता है कि हमारे देश में भाईचारा नहीं? ज़रा अखबारों में देखो। किस तरह से दो आतंकवादियों के मारे जाने के बाद तीन हज़ार लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। उनकी ये एकता किसी के लिए भी एक उदाहरण हो सकती है। आज़मगढ़ में उन सच्चे मुसलमानों की शहादत की याद में ईद नहीं मनाई गई। मुसलमान गले नहीं मिले। सेवइयाँ नहीं बनी। इमाम ने कहा इसलाम ख़तरे में है।

अभी भी आपको इस कौम की बेशर्मी नहीं दिखी? या फिर से आपने एक आम हिन्दू की तरह नज़रन्दाज़ कर दिया? कभी आपके मन में ये बात उठी कि धमाकों में इतने हिन्दू मरे हैं तो हम दिवाली न मनाएँ? आप में इतना विवेक ही कहाँ है? आप तो ख़ुश हो गए कि चलो हम और हमारे परिवार तो इन धमाकों से सुरक्षित बच कर निकल आए। हमें तो चोट नहीं लगी। तो फिर चलो मॉल घूमने चलें। नई फ़िल्म देखें। और भगवान को ख़ुश करने के नवरात्र के व्रत की रिश्वत दे देंगे। सब ठीक हो ही जाएगा।

नहीं! कुछ ठीक नहीं होगा। ये सच्चे मुसलमान देश के सच्चे दुश्मन हैं। हर बार तुम्हें ऐसे ही मारेंगे। और कोई राम, कृष्ण, शिव, कल्कि तुम्हें बचाने नहीं आएगा। क्यों? क्योंकि तुम कर्महीन हो। तुम कभी क्रान्ति नहीं करना चाहते। चाहते भी हो तो ये कि अगर चन्द्रशेखर आज़ाद और राम प्रसाद बिस्मिल पैदा हों तो वो तुम्हारे घर नहीं पड़ोसी के यहाँ हों। अरे यही मूर्खता और कायरता हमें रसातल में पहुँचा देगी। तब मॉल घूम सकोगे, ये राग रंग चल पाएँगे?

इन नर पिशाचों पर दया करना धर्म नहीं, नीति नहीं। वेद के अनुसार

यदान्त्रेषु गवीन्योर्यद् वस्तावधि संश्रुतम्।
एका ते मूत्रम् मुच्यताम् बहिर्वालिति सर्वकम्।।
-अथर्व काण्ड १ सूक्त ३ मंत्र ६
अर्थात् जैसे कि आँतों में और नाड़ियों में और मूत्राशय के भीतर जमा मल मूत्र कष्ट देता है और उसको निकाल देने से चैन मिलता है वैसे ही मनुष्य को शारीरिक, आत्मिक और सामजिक शत्रुओं को निकाल देने से सुख प्राप्त करता है।
ये रक्तबीज मुसलमान भी ऐसे ही सामाजिक शत्रु हैं जिनके निकालने से हमारे देश को चैन मिलेगा। अभी भी इनको पालते रहे, इनके ज़ुल्मों के सहते रहे तो हमारा देश रोगी हो जाएगा। सोचो और विचारो।
अगर टिप्पणी नहीं करना चाहते तो मुझ़े मेल करो matribhoomibharat@gmail.com पर।

शुक्रवार, 3 अक्तूबर 2008

मातृभूमि की पुकार

मेरे पिछले और इस आलेख के बीच में फिर से तीन जगह धमाके हो चुके हैं। कई और लोगों की जानें गईं। गृह मन्त्री कभी अपनी तो कभी पुलिस की बगलें झाँकते नज़र आए। हमें भी लोगों को भी पता है कि इन घटनाओं में हूजी, सिमी और इंडियन मुजाहिदीन जैसे किसी इस्लामवादी संगठन का नाम सामने आएगा। कुछ शोर होगा फिर अगले धमाके तक शान्ति हो जाएगी। तूफ़ान से पहले की शान्ति। श्मशान की शान्ति। नपुंसकों की शान्ति। गाँधी की शान्ति।
मूर्ख कहीं के!! इतना सब होने के बाद भी रटेंगे ईश्वर अल्लाह तेरो नाम। सौहार्द्र के नारे लगाएँगे। प्रेम और अहिंसा के सैकड़ों साल पुराने राग का गर्धव अलाप करेंगे। लेकिन बात यदि होगी क्रान्ति के आह्वान की तो अपने में दड़बों में छिप जाएँगे।

पर अब समय आ गया है कि हमें निर्णय कर लेना चाहिए कि हमें एक सच्चे भारतीय की तरह सम्मान से जीना है या फिर इसलाम के जूते के नीचे ख़ुद को कुचलवाना है। कुछ देर हम और रुके, और थमे या सोचने लगे कि सब ठीक हो गया है तो ये अल्लाह के नेक बन्दे हमें ठिकाने लगाने के लिए फिर से तैयार हो जाएँगे। पर क्या करें अपनी क़ौम के ग़द्दारों से भी पार पाना ज़रूरी है। एकता मंच पर आतंकवादियों(मुसलमानों) के साथ शान्ति की बातें बनाने वालों को भी ठिकाने लगाना आवश्यक है।

इसलिए हे समान विचारधारा वालों मिल जाओ। हम जानते हैं कि हम कम है। हमारा धर्म अभी एकजुट नहीं, हमारे हाथों में हथियार नहीं, हमारे पास वो संख्या भी नहीं। पर हमारे पास इच्छाशक्ति है जो कि हम जैसे सोलह भी सोलह करोड़ पर भारी पड़ेंगे। रक्त की पवित्रता का परिचय दो। देशभक्ति का यज्ञ है सर्वस्व होम करने का दम रखो। वीरगति को प्राप्त हुए तो मोक्ष मिलेगा, विजय हुई तो सांसारिक सुख। निर्णय तुम्हें करना है।

बुधवार, 1 अक्तूबर 2008

विभीषण नहीं कृष्ण बनिए

मित्रों मुझे इस ब्लॉग को आरमभ करे मात्र कुछ ही दिन हुए हैं पर लोगों का ध्यान व उनकी टिप्पणियाँ प्राप्त होने लगी हैं। जिनको देखकर मैंने पाया कि बहुत कम हिन्दू ऐसे हैं जो इस ब्लॉग से प्रसन्न हैं। अन्य सभी ये मानते हैं कि मेरे विचार अतिवादी और सच्चाई से परे हैं। कइयों ने कहा कि क्रान्ति ब्लॉग के माध्यम से नहीं होती। मैं कहता हूँ हे जयचंदों! क्या आपने ही अपने धर्म के विनाश का ठेका ले रखा है? कुछ काम सच्चे मुसलमानों को भी तो करने दीजिए।

मैंने पांचजन्य और ऑर्गनाइज़र दोनों ही पढ़े हैं और पाया कि उनके आलेखों में वो जान, वो जज़्बा नहीं था। लेखनी जैसे विलाप कर रही थी। कभी मन्दिरों के तोड़े जाने का, कभी पाकिस्तानी हिन्दुओं की स्थिति का, कभी किसी संन्यासी की हत्या का और कभी धर्मांतरण का हवाला देकर दिन्दुओं को जगाने की नाकाम कोशिश की जा रही थी।

इसलिए मैंने जो आलेख इस ब्लॉग में प्रकाशित किए उनमें कहीं भी कोई आत्मदया का सुर नहीं था, बस सच था... वो सच जो हम वर्षों से नज़रन्दाज़ करते आए हैं... वो सच जो हमारे पूर्वजों ने नकारा और हानि उठाई। अब मैं लोगों को जगाने का काम कर लहा हूँ तो क्यों आपत्ति है, क्यों कुछ लोगों के पेट में दर्द हो रहा है?

मेरी जन्मभूमि पर अत्याचार हो रहा है तो मैं क्यों चुप रहूँ? मैं औरों की तरह अल्लाह के बन्दों के हाथों मरने नहीं आया। मैं किसी बम हादसे का भी शिकार नहीं होऊँगा। मैं किसी सरकार के हाथों की भी कठपुतली नहीं। मैं इतना निर्बल नहीं जो लोगों की टिप्पणियों से अपनी विचारधारा के मार्ग को परिवर्तित कर दूँगा। हो सकता है कि आज कुछ निर्जीव हिन्दुओं को मेरी बात का ‘लॉजिक’ न समझ में आए पर मैं आशान्वित हूँ कि भविष्य में ऐसा अवश्य होगा और तब इस देश की हिन्दू राष्ट्र की कल्पना साकार होगी। इसलिए हे मूर्खों अधर्म के इस युग में विभीषण मत बनो क्योंकि तुम जैसे घर के भेदियों से पहले ही हमारी मातृभूमि का सीना छलनी है।

“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:,
अभ्युत्थानम् अधर्मस्य तदात्मानम् सृजाम्यहम्
परित्राणाय साधूनाम् विनाशायच दुष्कृता
धर्मसंस्थापनार्थाय संभावामि युगे युगे”

मंगलवार, 30 सितंबर 2008

रसूल और अल्लाह की समझदारी

सारे मुसलमान मानते हैं कि उनका पन्थ सर्वश्रेष्ठ है और वैज्ञानिक भी। पर हम ‘मासूम हिन्दू’ सर्व धर्म समभाव के मारग पर चल कर उन को अपने बराबर का मान लेते हैं। लेकिन यह देखने की, जानने की कोशिश नहीं करते कि आख़िर इस्लाम में ऐसा क्या है जो वैज्ञानिक है, सबसे अलग है।

हम बताते हैं। कुरआन (शरीफ़???) में जिस विज्ञान का परिचय दिया गया है वो आर्यभट्ट से लेकर नासा के वैज्ञानिकों तक की कल्पने से भी परे है। आइए जानते हैं क्या है वो अद्भुत जानकारी-

“अल्लाज़ी खलक सब्आ समावातिन तिबाका”
-कुरान, सूरत मुल्क, पारा 29, आयत 3

यानी वह ख़ुदा जिसने उत्पन्न किए एक एक करके सात आसमान। ये सात आसमान कुछ इस प्रकार के हैं-

1. पहला समुद्र की एक लहर के समान है;
2. दूसरा संगमरमर का;
3. तीसरा लोहे का;
4. चौथा ताँबे का है;
5. पाँचवाँ आसमान चाँदी का बना है;
6. छठा सोने का है;
7. और सातवाँ याक़ूत (काले मोती) से बना है

अब मूर्खता की सीमा तक अज्ञानी रसूल और अल्लाह को सिखाए कि आसमान कुछ होता ही नहीं बस एक खाली जगह है जहाँ सारे खगोलीय पिण्ड अपनी अपनी गति और कक्षा में विचरण कर रहे हैं? और जो चीज़ है ही नहीं उसके ऊपर उस जैसी छ: और चीज़ों का रखा जाना ‘अति वैज्ञानिक’ मस्तिष्क की वाहियात उपज है।

अब सोचो क्या हम ऐसी घटिया बाते सिखाने वाले अल्लाह और रसूल को अपने ईश्वर के साथ रख सकते हैं। आगे भी आपको ऐसी आँखें खोलने वाली जानकारियाँ दी जाती रहेंगी। तो पढ़ते रहिए और जो पढ़ा है उस पर एक बार ज़रूर सोचिए।

रविवार, 28 सितंबर 2008

मोहन शर्मा की शहादत से ख़तरे में इसलाम

दिल्ली में हुए सिलसिलेवार बम विस्फोटों के बाद दिल्ली पुलिस ने अब तक जो भी किया है वह निश्चय ही प्रशंसनीय है। हमने देखा किस तरह से एक एनकाउण्टर के दौरान इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा ने अपनी शहादत दी और कॉंस्टेबल बलवन्त राणा घायल हुए।

जामिया नगर(सराय दहशतग़र्द) में हुई मुठभेड़ ने देश की जनता में आशा का संचार किया। पर पुलिस को क्या मालूम था कि उसके केवल दो लोगों की वीरता से सारा इस्लाम ख़तरे में पड़ जाएगा। जब इमाम बुख़ारी साहब ने मारे गए आतिफ़ और साज़िद की कब्रों का सजदा किया तो उन्हें इलहाम हुआ कि वो दिल्ली पुलिस का षडयंत्र था। फिर उन्होंने मीडिया के सामने एक बयान दिया जिसमें उन्होंने दिल्ली पुलिस पर ही शर्मा साहब की हत्या का आरोप लगा दिया। उनसे और उम्मीद भी क्या की जा सकती है? अब पैग़म्बर मुहम्मद के बाद जो भी ख़लीफ़ा बना पिछले ख़लीफ़ा को क़त्ल कर के बना। ऐसे गिरोह... क्षमा कीजिएगा क़ौम के एक अदना से सिपाही से अच्छा सोचने की आशा रखना हमारी ही मूर्खता का परिचायक होगा।

अब बताइए क्या करे पुलिस? बम विस्फोट हो जाएँ तो आफ़त, आरोपी पकड़े जाएँ तो अलपसंख्यकों पर अत्याचार, मुठभेड़ में आतंकियों को मारे तो हत्यारी। ऊपर से आतंकवादियों पर दया दृष्टि रखकर मुसलमानों के वोट पाने की उम्मीद में बैठी सरकार। यानी कोढ़ में खाज।

ख़ैर हम बचपन से एक कहावत सुनते आए है- “हाथी चला जाता है कुत्ते भौंकते रह जाते हैं”। दिल्ली पुलिस ने तो अपना काम कर दिया अब बुख़ारी साहब अपना काम कर रहे हैं।