देशभक्तों,
कश्मीर की समस्या। हम जब से बड़े हुए तब से यही पढ़ते सुनते आ रहे हैं। कभी कश्मीरी पण्डितों का खदेड़ा जाना तो कभी खुले आम खून खराबा। और इसका कारण केवल और केवल घाटी के नृशंस मुसलमान। पर आज ये क्रूर कौम दुखी है। कारण है सुरक्षा बल जो इनकी हैवानियत के विस्तार पर थोड़ा अंकुश लगाने का प्रयास कर रहे हैं।
असल में लड़ाई झगड़ा दंगा फसाद मुसलमान की फितरत में है। क्या करें मुहम्मद लड़ाका था और इसीलिए उसने जो प्यार के संदेश दिए, जो अमन की इबारतें कुरआन में लिखीं और जो सपने उसने देखे उनको साकार करने के लिए उसके अनुयायी दुनियाँ भर में उत्पात मचाते घूम रहे हैं। पहले कश्मीर में हिन्दू मुसलमानो में झगड़ा हुआ तो हिन्दू शराफ़त से पलायन कर गए। फिर धीरे धीरे घाटी में बचे सिर्फ मुसलमान। अब कर्बला रे वीरों के पास कुछ नहीं बचा। उनके पाकिस्तानी भाई भी बोर होने लगे। फिर िन्होंने आपस में ही दंगे शुरू कर दिए। पुलिस ने रोका तो उसे भी मारा। फिर सेना की मदद ली गई तो रोने लगे।
खैर हमें इस देशद्रोही कौम से हमें कोई सहानुभूति नहीं। हमें तो उस दिन की प्रतीक्षा है जब कश्मीर भी गुजरात हो जाएगा। एक बार फिर छोटे से तूफान के बाद शान्ति हो जाएगी और विकास का चक्र तीव्र गति से घूमेगा।
रही बात मुसलमान की वो तो 1400 वर्ष से लड़ता रहा है। हिन्दू के साथ रहेगा तो हिन्दू से लड़ेगा। अनपढ़ होगा तो दंगे करेगा गोधरा जैसे जघन्य पाप करेगा। पढ़ेगा लिखेगा तो तौकीर बनेगा और बम बनाएगा। मुसलमान अगर अकेला रहेगा तो शिया सुन्नी की लड़ाई लड़ेगा। फिर उसके बाद कौन ज्यादा मुसलमान है इस बात के लिए संघर्षरत हो जाएगा।
पर हमें प्रतीक्षा है कश्मीर कब गुजरात बनेगा।
मंगलवार, 13 जुलाई 2010
बुधवार, 17 मार्च 2010
कौन सा युवा?
बहुत दिन से एक 40 वर्षीय नेता को युवा शक्ति के प्रणेता के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। युवा को सपने दिखाए जा रहे हैं। यानी उसको महान बता कर एक बार फिर उसके मताधिकार का दोहन करने का प्रयास किया जा रहा है। और भारत का युवा इसी को सच मान कर सपने देख भी रहा है। वह भ्रम में है कि उसके दिन बहुरने वाले हैं। भले ही आवश्यक वस्तुओं के दाम गगनचुम्बी भ्रष्टाचार से नित नई ऊँचाइयाँ छू रहे हों पर उसको यह लगता है कि कुछ तो अच्छा होने ही वाला है।
हे परम भोले भारत के युवा पहले ठीक से ये तो समझ लो कि उनके युवा की परिभाषा क्या है। तुम सोचते हो कि तुम युवा हो क्योंकि तुम्हारी आयु 18 से 35 के बीच है। तुम्हें लगता है कि ये युवा अधिकारों की बात करने वाले महाशय तुम्हें नौकरी दिलाएँगे और तुम इनकी बातों पर विश्वास भी कर लेते हो। पर कभी इनके मधुर भाषण पर मुग्ध होने की बजाय तुमने इनकी नीतियों और इनके दावों को विवेक के तराजू पर तोलने का प्रयास किया? कभी अनुभव की ससौटी पर उन्हें कसने की कोशिश की? नहीं। इतना हमारी फटाफट जनरेशन कहाँ सोचती है? और नहीं सोचती इसलिए हमेशा एक ऐसी भीड़ के रूप में पिसती रहती है जिसका राजनीतिक स्वार्थों पूर्ति के लिए दोहन किया जा सकता है।
खैर जो तुमने आज तक नहीं सोचा वो मैं तुम्हें बताता हूँ।
पहले तो यह सोचो कि तुममें औऱ उनके युवा में क्या अन्तर है। तुम तो दिन रात मरते खपते रहते हो कभी डिग्री पाने की आस में तो कभी नौकरी की तलाश में। तुम कभी पेज थ्री पार्टियों में भी कभी नहीं गए। बड़े बंगलों में घुसने का सौभाग्य तुम्हें कहाँ मिला है। लम्बी गाड़ियों को देखकर तुम बस आहें ही भर सकते हो। सपने भी तुम स्कूटर या बाइक के देखते हो। तुम कहाँ से युवा की उनकी परिभाषा में फिट बैठते हो? हाँ तब बात और थी यदि तुम्हारे पीछे कोई नाम होता। तुम्हारे पूर्वजों ने किसी वंश की चरण वन्दनाएँ की होतीं। अगर तुम्हारे नाम के आगे गाँधी लगा होता तो फिर तो चाँदी ही चाँदी थी। चलो यह तो किस्मत की बात थी पर तुम संगमा, प्रसाद, पाइलट में से कुछ तो हुए होते। हाय री किस्मत तुम तो मिडिल क्लास में हुए हो तो तुम्हें कहाँ अधिकार है कि तुम बड़ा बनने की इच्छा रख सको। तुम कहीं से उनके यूथ के मापदण्डों को पूरा नहीं कर सकते। वो राजा हैं, और चमचे भी हैं पर तुम उनमें से कुछ नहीं। इसलिए अपने अधिकारों के लिए संघर्ष और इच्छा दोनों का ही त्याग कर दो। ऐसा उनका मंतव्य है।
अतः हे युवाओं जागो। बहुत दिवास्वप्न देख लिए तुम्हारी शक्ति तुम्हारे विवेक और संघर्ष में निहित है। विवेक को जागृत करो और संघर्षरत हो जाओ। तुम्हारी अधिकार प्राप्ति केवल क्रान्ति से ही सम्भव है।
हे परम भोले भारत के युवा पहले ठीक से ये तो समझ लो कि उनके युवा की परिभाषा क्या है। तुम सोचते हो कि तुम युवा हो क्योंकि तुम्हारी आयु 18 से 35 के बीच है। तुम्हें लगता है कि ये युवा अधिकारों की बात करने वाले महाशय तुम्हें नौकरी दिलाएँगे और तुम इनकी बातों पर विश्वास भी कर लेते हो। पर कभी इनके मधुर भाषण पर मुग्ध होने की बजाय तुमने इनकी नीतियों और इनके दावों को विवेक के तराजू पर तोलने का प्रयास किया? कभी अनुभव की ससौटी पर उन्हें कसने की कोशिश की? नहीं। इतना हमारी फटाफट जनरेशन कहाँ सोचती है? और नहीं सोचती इसलिए हमेशा एक ऐसी भीड़ के रूप में पिसती रहती है जिसका राजनीतिक स्वार्थों पूर्ति के लिए दोहन किया जा सकता है।
खैर जो तुमने आज तक नहीं सोचा वो मैं तुम्हें बताता हूँ।
पहले तो यह सोचो कि तुममें औऱ उनके युवा में क्या अन्तर है। तुम तो दिन रात मरते खपते रहते हो कभी डिग्री पाने की आस में तो कभी नौकरी की तलाश में। तुम कभी पेज थ्री पार्टियों में भी कभी नहीं गए। बड़े बंगलों में घुसने का सौभाग्य तुम्हें कहाँ मिला है। लम्बी गाड़ियों को देखकर तुम बस आहें ही भर सकते हो। सपने भी तुम स्कूटर या बाइक के देखते हो। तुम कहाँ से युवा की उनकी परिभाषा में फिट बैठते हो? हाँ तब बात और थी यदि तुम्हारे पीछे कोई नाम होता। तुम्हारे पूर्वजों ने किसी वंश की चरण वन्दनाएँ की होतीं। अगर तुम्हारे नाम के आगे गाँधी लगा होता तो फिर तो चाँदी ही चाँदी थी। चलो यह तो किस्मत की बात थी पर तुम संगमा, प्रसाद, पाइलट में से कुछ तो हुए होते। हाय री किस्मत तुम तो मिडिल क्लास में हुए हो तो तुम्हें कहाँ अधिकार है कि तुम बड़ा बनने की इच्छा रख सको। तुम कहीं से उनके यूथ के मापदण्डों को पूरा नहीं कर सकते। वो राजा हैं, और चमचे भी हैं पर तुम उनमें से कुछ नहीं। इसलिए अपने अधिकारों के लिए संघर्ष और इच्छा दोनों का ही त्याग कर दो। ऐसा उनका मंतव्य है।
अतः हे युवाओं जागो। बहुत दिवास्वप्न देख लिए तुम्हारी शक्ति तुम्हारे विवेक और संघर्ष में निहित है। विवेक को जागृत करो और संघर्षरत हो जाओ। तुम्हारी अधिकार प्राप्ति केवल क्रान्ति से ही सम्भव है।
गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010
भारतीयता का शत्रु उपराष्ट्रवाद
वन्देमातरम्,
हे देशप्रेमियों इतने मैं आज बहुत समय बाद लेख लिखते हुए प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूँ। मै हमेशा से मानता आया हूँ कि विचारों की प्रभावशाली अभिव्यक्ति के लिए चिन्तन, मनन व अनुभव की गहन आवश्यकता होती है। और यदि इनमें से किसी भी चीज़ का अभाव हो जाए तो आदमी राहुल गाँधी और बाल ठाकरे जैसा छिछला हो जाता है और उसके विचार और भाषण उसी की तरह ओछे हो जाते हैं।
खैर हम अपने विषय की ओर बढ़ते हैं। उपराष्ट्रवाद हमारे देश के लिए इसलाम के बाद दूसरा बड़ा प्रश्न बन कर उभर रहा है। यह हमारी पवित्रतम मातृभूमि के प्रति उतना ही बड़ा अपराध है जितना कि मुसलमानों का इस धरा पर होना। साधारण व्यक्ति को पता ही नही कि आखिर ये उपराष्ट्रवाद है क्या, ये कहाँ से आया क्यों है औऱ देश को किस रास्ते ले जाएगा। मैं बताता हूँ। ये बड़ी बातें हो सकता ह कि आम समझ से परे हों लेकिन उदाहरणों से सब स्पष्ट हो जाएगा। कुछ बातें हम प्रायः सुनते है जैसे-
1.भगत सिंह को पंजाबियों द्वारा शहीदे आज़म बताया जाना।
2.मराठियों द्वारा वीर शिवाजी का गुणगान।
3.बंगालियों का नेताजी की वीरता का बखान।
4.तमिलों का अपनी भाषा और संस्कृति पर अत्यधिक गर्व।
अब आप कहेगे कि इसमें बुरा क्या है। इसमें कौन सी बात है जो कि देश के लिए खतरा बन सकती है। मैं कहता हूँ कि यह बहुत बड़ा खतरा है ठीक इसलाम की ही तरह। कैसे ये मैं बताता हूँ।
भगत सिंह, शिवाजी और नेताजी सुभाष निश्चय ही देश के महानतम सपूतों में से थे इनकी वीरता, शौर्य और देशभक्ति अभूतपूर्व थी। पर जब इन महापुरुषों का गुणगान लोग अपने क्षुद्र राजनीतिक लाभ के लिए करते हैं तो यह उपराषट्रवाद कहलाता है। मान लीजिए कोई पंजाबी भगत सिंह को शहीदों का राजा बताए तो क्या कोई उत्तर प्रदेश वाला चन्द्रशेखर आज़ाद और राम प्रसाद बिस्मिल को दरबारी मान लेगा? या फिर नेता जी की वीरता की रट लगाने वाले बंगाली की बात मानकर कोई गुजराती सरदार वल्लभ भाई से ऊपर समझ लेगा? तमिल भाषा एक महान भाषा है पर इसका एक अर्थ क्या ये भी है कि हिन्दी और संस्कृत उससे कमतर हैं?
इसका एक उत्तर है नहीं। अपने तुच्छ स्वार्थ के लिए हम अपने महापुरुषों को महान और सबसे महान बताते हैं और यह एक प्रतिक्रिया को जन्म देता है। एक औसी प्रतिक्रिया जिसमें एक क्षेत्र का व्यक्ति दूसरे क्षेत्र के महापुरुष पर कीचड़ उछालता है।
पर इतनी बात राज ठाकरे, बाल ठाकरे जैसे हिन्दुओं की समझ में नहीं आती तो राहुल की तो क्या कहें। आम हिन्दू जितनी जल्दी ये बात समझ ले उतना अच्छा।
भारत माता की जय!
हे देशप्रेमियों इतने मैं आज बहुत समय बाद लेख लिखते हुए प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूँ। मै हमेशा से मानता आया हूँ कि विचारों की प्रभावशाली अभिव्यक्ति के लिए चिन्तन, मनन व अनुभव की गहन आवश्यकता होती है। और यदि इनमें से किसी भी चीज़ का अभाव हो जाए तो आदमी राहुल गाँधी और बाल ठाकरे जैसा छिछला हो जाता है और उसके विचार और भाषण उसी की तरह ओछे हो जाते हैं।
खैर हम अपने विषय की ओर बढ़ते हैं। उपराष्ट्रवाद हमारे देश के लिए इसलाम के बाद दूसरा बड़ा प्रश्न बन कर उभर रहा है। यह हमारी पवित्रतम मातृभूमि के प्रति उतना ही बड़ा अपराध है जितना कि मुसलमानों का इस धरा पर होना। साधारण व्यक्ति को पता ही नही कि आखिर ये उपराष्ट्रवाद है क्या, ये कहाँ से आया क्यों है औऱ देश को किस रास्ते ले जाएगा। मैं बताता हूँ। ये बड़ी बातें हो सकता ह कि आम समझ से परे हों लेकिन उदाहरणों से सब स्पष्ट हो जाएगा। कुछ बातें हम प्रायः सुनते है जैसे-
1.भगत सिंह को पंजाबियों द्वारा शहीदे आज़म बताया जाना।
2.मराठियों द्वारा वीर शिवाजी का गुणगान।
3.बंगालियों का नेताजी की वीरता का बखान।
4.तमिलों का अपनी भाषा और संस्कृति पर अत्यधिक गर्व।
अब आप कहेगे कि इसमें बुरा क्या है। इसमें कौन सी बात है जो कि देश के लिए खतरा बन सकती है। मैं कहता हूँ कि यह बहुत बड़ा खतरा है ठीक इसलाम की ही तरह। कैसे ये मैं बताता हूँ।
भगत सिंह, शिवाजी और नेताजी सुभाष निश्चय ही देश के महानतम सपूतों में से थे इनकी वीरता, शौर्य और देशभक्ति अभूतपूर्व थी। पर जब इन महापुरुषों का गुणगान लोग अपने क्षुद्र राजनीतिक लाभ के लिए करते हैं तो यह उपराषट्रवाद कहलाता है। मान लीजिए कोई पंजाबी भगत सिंह को शहीदों का राजा बताए तो क्या कोई उत्तर प्रदेश वाला चन्द्रशेखर आज़ाद और राम प्रसाद बिस्मिल को दरबारी मान लेगा? या फिर नेता जी की वीरता की रट लगाने वाले बंगाली की बात मानकर कोई गुजराती सरदार वल्लभ भाई से ऊपर समझ लेगा? तमिल भाषा एक महान भाषा है पर इसका एक अर्थ क्या ये भी है कि हिन्दी और संस्कृत उससे कमतर हैं?
इसका एक उत्तर है नहीं। अपने तुच्छ स्वार्थ के लिए हम अपने महापुरुषों को महान और सबसे महान बताते हैं और यह एक प्रतिक्रिया को जन्म देता है। एक औसी प्रतिक्रिया जिसमें एक क्षेत्र का व्यक्ति दूसरे क्षेत्र के महापुरुष पर कीचड़ उछालता है।
पर इतनी बात राज ठाकरे, बाल ठाकरे जैसे हिन्दुओं की समझ में नहीं आती तो राहुल की तो क्या कहें। आम हिन्दू जितनी जल्दी ये बात समझ ले उतना अच्छा।
भारत माता की जय!
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