बुधवार, 8 अक्टूबर 2008

वाह रे महात्मा! वाह!!

मेरे कुछ दोस्त मुझ पर आरोप मढ़ते हैं कि मैं इस्लाम के विरुद्ध लिखने के अलावा कुछ और नहीं लिख सकता। कुछ का कहना है कि इतने दिन से कोई विस्फोट नहीं हुआ इसलिए लेखनी की धार मन्द पड़ने लगी है। यह लेख ऐसे ही लोगों के लिए लिख रहा हूँ। यह बताने के लिए कि मेरी कलम की आग बम विस्फोटों के साथ ठण्डी नहीं पड़ सकती। चलिए आज इस्लाम न सही भारत में इस्लाम के कारण की बात करते हैं

कहते हैँ आज़ादी दिलाई थी एक महात्मा ने। मतलब हम नहीं कहते ऐसा कांग्रसियों ने कहा। हमने माना क्योंकि हमारे पुरखों ने तब आँख कान बन्द कर लिए और महात्मा के चेलों ने सत्तासीन होने के लिए बेचारों का लाभ उठाया। चलिए हमें गाँधी के महात्मा होने से भी ऐतराज़ नहीं पर हम जानना चाहेंगे उन तमाम सत्ता के लड्डू चखने वाले कांग्रेसियों से और उन गाँधी टोपी पहनने वालों से कि क्या जवाब है उनके पास इन सवालों के-

भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को गाँधी के प्रयासों से बचाया जा सकता था। पर ऐसा क्यों नहीं हुआ? क्या गाँधी देशभक्ति से ज़्यादा राजनीति में दिलचस्पी लेने लग गए थे? क्या उनके ‘करियर’ को देशभक्त क्रान्तिकारियों व उनकी बढ़ती हुई ख्याति से ख़तरा मालूम होने लगा था?
गाँधी ने सत्य और अहिंसा की कसमें खाईं और लोगों को खाने पर मजबूर भी किया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान उनकी लाश पर ही बनेगा। पर गाँधी की लाश 14 अगस्त 1947 में नहीं गिरी। अगर वो सत्य के मार्ग पर इतनी शिद्दत से चलते थे तो आत्महत्या क्यों नहीं की?
अंग्रेज़ों के बाद हमारे देश की आर्थिक हालत बहुत ख़राब थी। पर गाँधी के कहने पर 56 करोड़ रुपए पाकिस्तान को दिए गए। क्या हमें या जानने का अधिकार नहीं?
गाँधी ने 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन का ऐलान किया। कुछ कुछ वैसा ही जब प्रथम विश्व युद्ध के शुरुआती दिनों में लोकमान्य तिलक ने ‘कहा था लोहा गरम है चोट करो’। तब गाँधी ने इसे (अंग्रेज़ों की) पीठ पर वार करने जैसा कह के विरोध किया था। क्यों? तीस साल में क्या सारे सिद्धान्त बदल गए? या 1914 में राजनीति में चमकने का अवसर नहीं खोना चाहते थे?
नेहरू ने उन्हें बापू कहा तो देश ने राष्ट्रपिता भी मान लिया? क्यों? पिता का कर्तव्य होता है जन्म देने के बाद अपनी संतान का भरण-पोषण करना पर यहाँ तो महात्मा जी ने उसके दो टुकड़े करा डाले। क्या ये ही राष्ट्र के पिता जी का काम था?
क्यों सुभाष चन्द्र बोस के कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव जीतने पर गाँधी ने उसे अपनी निजी हार बताया?


मुझे लगता है आप सभी पाठक पढ़े लिखे होने के साथ साथ विचारशील और मननशील भी हैं। इसलिए इन प्रश्नों पर एक बार सोचिएगा ज़रूर। सोचने पर आप पाएँगे कि एक एक प्रश्न अक्षरश: सही है।

1 टिप्पणी:

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

mitra maine gandhi vishyak kafi lekh likhe hai aur purv me is par bahut charcha bhi huaa hai. aaj bhi jaroort hai hai gandhi ke kartabo par charcha honi chahiye.