हे महामूर्ख हिंदुओं मैंने तुम्हें कई बार ‘पवित्र’ रमज़ान के मौक़े पर देशद्रोहियों के साथ इफ़्तारी करते देखा है। बहुत अच्छी बात है। सर्वधर्म समभाव और परस्पर प्रेम फैलाने का ठेका तो सालों से तुमने उठाया है और आगे भी उठाते रहोगे। हो सकता है कल को तुम धर्म निरपेक्षता के नाम पर उनकी जूठन भी चाट जाओ।
हे चिकन कोरमा और दो पूड़ी के लालच में बिकने वालों ज़रा ग़ौर से देखो इन म्लेच्छों की शक़्लों को... इनकी दाढ़ियों और इनके पर्दे में उस ख़ौफ़ को पढ़ो... इनकी सूरतों से टपकने वाली जेहाद को देखो... फिर सोचो क्यों तुम इनकी मदद करके अपने ही धर्म के दुश्मन बन रहे हो... क्यों तुम किसी अनवर, अशरफ़ या इक़बाल को भाई बोलते हो... क्या उन्होंने तुम्हें भाई माना है?हर बार एक धमाका होता है और हर बार निर्दोष हिंदू मारे जाते हैं.. हर त्रासदी के पीछे कोई न कोई अबू, इब्राहीम या नईम ही होता है... पर जब तक तुम पर नहीं बीतती तब तक तुम शोरबे के चटखारे लेते हो।
कबाब की टँगड़ियाँ तोड़ने से पहले एक बार सोचो ये लोग अगर ऐसे ही बढ़ते रहे तो तुम्हारी भी टाँगें ऐसे ही तोड़ी जाएँगी... तुम्हारे घर की अस्मत तार तार होगी.... यदि समय रहते इन लहराती दाढ़ियों और चमकती टोपियों का कुछ नहीं किया गया तो क्या होगा इसकी कल्पना भी कठिन है.... भारत को श्मशान बनने से बचाओ... इनसे संबंध रखने से पहले अपनी माँ और मातृभूमि के बारे में एक बार सोचो।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें