मैंने हिंदू और मुसलमान दोनों ही अध्ययन किया और ये जानने की कोशिश की कि हम हिन्दू उनसे इतना क्यों पीछे हैं.... आमतौर पर हमारे कई हिन्दू ये नहीं मानेंगे पर मैं मानता हूँ कि हमारा धर्म हमारी क़ौम कमज़ोर है। क्यों? क्योंकि हमारे बच्चे धर्म से ज़्यादा रोटी कपड़ा और मक़ान के सपने देखते हैं।
मैंने देखा है एक मुसलमान चाहे वो डॉक्टर हनीफ़ या तौक़ीर जैसा सच्चा मुसलमान न भी हो तब भी क़ौम को नहीं भूलता। जब इनके चार लोग कहीं भी बैठते हैं तो चाहे वो रिक्शे वाले हों या फिर प्रबुद्ध जन अपनी क़ौम के हक़ की बात करते हैं। चाहे उठंगा पायजामा या दाढ़ी न भी रखें पर क़ौम ही सर्वोपरि रहती है।
लेकिन एक हिंदू अपने आप को 'लिबरल' दिखाने में ज़्यादा दिलचस्पी लेता है। मात्र पाँच हज़ार रुपए की नौकरी हो तब भी पार्टी करने की सोचता है। अपने आराम में ख़लल न पड़े इसलिए हमेशा एकता और साम्प्रदायिक सद्भावना जैसी बात करता है।
अरे मेरे भाइयों ज़रा सोचो जिस दिन ये लोग पाकिस्तान के अपने भाइयों को यहाँ बसाएँगे, इन मुसलमान डॉक्टरों, इंजीनियरों के बम हम पर चलाए जाएँगे, तब तुम पार्टी कर पाओगे, मौज मस्ती कर पाओगे।
ज़रा सोचो हिंदुस्तान के इन करोड़ों आईएसआई एजेंटों से क्या तुम सुरक्षित हो? ऐसे कई तौक़ीर और हनीफ़ हमारे बीच हैं जो लगभग हज़ार साल से हमारी मातृभूमि के सीने पर मूँग दल रहे हैं। ये लोग दिन में भाईचारे की बात करते हैं और रात को दंगे और आतंक की फ़सल बोते हैं पर हम मस्त हैं बिना सोचे समझे कहते हैं ईश्वर अल्लाह तेरो नाम।
इन लोगों को धर्म निरपेक्षता यहीं सूझती है इस भारत भूमि पर क्योंकि यह दारुल हरब (जहाँ मुसलमान अल्पसंख्यक हों) है। पर पंथ निरपेक्षता किसी मुसलमान देश में नहीं अपनाई जाती वहाँ सब कुछ क़ुरान के अनुसार होता है।
वो हमें मारे हमारा क़त्ले आम करें पर किसी के कानों पर जूँ तक नहीं रेंगती। क्योंकि हमारे धर्म के साथ राजनीति हो रही है और देशद्रोहियों को दावतें दी जा रही हैं। अब भी जाग जाओ नहीं तो ये रक्तबीज देश को दीमक की तरह चाट जाएँगे तब तुम्हारा ये एकता का अलाप विलाप में बदल जाएगा। सोचो तब क्या करोगे?
बुधवार, 17 सितंबर 2008
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1 टिप्पणी:
किसी भी आतंकी वारदात में मुसलमान ही सामने क्यो आते हैं... क्यों किसी हिंदू का नाम आतंकी वारदातों में नहीं पाया जाता... क्यों गद्दारी पर उतरे हैं कुछ लोग... क्यो उन्हे इस देश से प्यार नहीं है... क्या हमारी सरकार या पुलिस को नहीं पता कि बाटला हाउस या जामिया नगर में क्या होता है.. क्यों समय रहते आंखें नहीं खुलती हमारी सरकार या पुलिस की... क्यो गंवाना पडा मोहनचंद शर्मा जैसा अफसर... क्या खत्म होगा सोच का फर्क... आपका प्रयास अच्छा है... लगे रहो....
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