आज एक न्यूज़ चैनल पर हेडलाइन चल रही थी- ‘फिर फिसली सानिया’। ख़बर सानिया मिर्ज़ा की डब्ल्यूटाए रैंकिग में 92वें स्थान पर फिसलने को लेकर थी। ग़लत बात है। ऐसा किसी को नहीं कहना चाहिए वो भी तब जब कोई व्यक्ति ग़लत लाइन में हो। अब अगर सानिया मिर्ज़ा बम बनाने का काम कर रही होतीं तो फिसलने का कोई सवाल उठता? अब एक तो आतंकवादी क़ौम की उस लड़की से आप छोटी छोटी स्कर्टें पहना कर टेनिस खिलवाएँगे तो उसका फिसलना तो अवश्यंभावी है ही....जब मोहम्मद अज़हरुद्दीन को हमने कप्तान बनाया था तो क्या हुआ था? उसने टीम इण्डिया को ही बेच डाला था।
चलिए छोड़ें अब बात उन सच्चे मुसलमानों की जिनका एनकाउण्टर करके जिन्हें दिल्ली पुलिस ने कुत्ते की मौत मार दिया। पोस्टमॉर्टम के बाद उनको परिवार को सौंप दिया गया लेकिन उनको दफ़नाने के दौरान घरवाले भी मौजूद नहीं थे। थे तो जामा मस्जिद के इमाम बुख़ारी साहब जो ऐसे मौकों पर अक्सर देखे जाते हैं पर कोई न्यूज़ चैनल नहीं बोला। क्यों? क्योंकि सब डरते हैं मुसलमान नाराज़ हो जाएगा। अरे कब तक इन रक्तबीजों की नाराज़गी से डरोगे? 30 प्रतिशत होते ही इन अल्लाह के बंदों का नंगा नाच शुरू हो जाएगा तब 30 प्रतिशत से 100 प्रतिशत होने में इन्हें ज़्यादा समय नहीं लगेगा। अरे रक्तपिपासु आदमख़ोरों पर कैसी दया? इनके कौन से मानवाधिकार? और किस बात से डर रहे हो? एक बार डर को त्याग दो और कूद पड़ो मैदान में हिंदुत्व के रक्षक सेनानियों की भाँति फिर देखो ये 16 प्रतिशत आबादी कैसे दुम दबा कर अपने आकाओं के पास पाकिस्तान भागती है।
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